Rain And Condensation Process

Rain And Condensation Process- Rain is liquid water in the form of droplets that have condensed from atmospheric water vapor and then become heavy enough to fall under gravity.

Condensation is the process of water vapor turning back into liquid water.

Rain And Condensation Process

वर्षा

जब जल तरल या ठोस रूप में धरातल पर गिरते है, तो इसे वर्षा कहते है।

प्रकृति के आधार पर  वर्षा के प्रकार

(01) संवहनीय वर्षा

उष्ण कटिबन्ध में पृथ्वी के अत्याधिक गर्म होने से ऊर्ध्वाधर वायु धारा बनती है। ये वायु धाराएं गर्म -आर्द्र वायु को वायुमंडल के उच्च स्तर तक उठा देती है।

इस प्रकार की आर्द्र वायु का तापमान ओसांक से निरन्तर नीचे गिरता रहता है तो बादल बनते है। ये बादल बिजली व गरज के साथ वर्षा करते है, इस प्रकार की वर्षा को संवहनीय वर्षा कहते है।

(02) पर्वतकृत वर्षा 

जब गरम आर्द्र हवाओं के रास्ते में कोई पर्वत अवरोध उत्पन करता है तो उन हवाओं को ऊपर उठना पड़ता है। ऊपर उठते हुए ये आर्द्र हवाएं ठंडी होने लगती है, जब उनका तापमान ओसांक से नीचे गिरता है तो बादल बन जाते है।

इन बादलों से पवनभिमुख ढालों के विस्तृत भागों में वर्षा होती है।

लेकिन जब ये पवनें पर्वतों को पार कर के दूसरी ओर पावनभिमुख ढालों पर उतरती है तो ये पवनें गर्म हो जाती है, जिससे वर्षा कम होती है।

  • पवनभिमुख ढालों की ओर के क्षेत्रों को “वृष्टि छाया क्षेत्र” कहते है।
  • चेरापूंजी पर्वतकृत वर्षा का एक उदाहरण है जो मेघालय की खासी पहाड़ी के दक्षिण सीमांत में स्थित है।

अभिसरण या चक्रवाती वर्षा

  • जब वायु तरंग अभिसरित होकर ऊपर उठती है तो इस प्रकार की वर्षा की उत्पति होती है।
  • जब विभिन्न घनत्व और तापमान की दो बड़ी वायु राशियाँ मिलती है, तो गर्म आर्द्र वायुराशि ठंडी वायुराशि के ऊपर चढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में गर्म वायुराशि संघनित होकर बादल बन जाती है जो वर्षा करवाती है, यह वर्षा चमक और गरज के साथ होती है।
  • इनमे संघनन की प्रक्रिया बार-2 वर्तागों के सहारे होती है।

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प्रादेशिक और मौसमी वितरण रूप

(01) प्रादेशिक अंतर 

  • जब वर्षा होती है, तो उसकी औसत वार्षिक मात्रा के आधार पर दुनिया के वर्षण क्षेत्रों की पहचान की जा सकती है, और यह कुछ इस प्रकार से है।

(a) भारी वर्षा के प्रदेश

  • इस वर्ग में 200 से.मी. से अधिक वर्षा वाले प्रदेश पाए जाते है।

(b) मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र

  • इस वर्ग में 100 से 200 से. तक के वर्षा वाले प्रदेश आते है।

(c) कम वर्षा वाले क्षेत्र 

  • इस वर्ग में 50 से 100 से. तक के वर्षा वाले प्रदेश आते है।

(d) अति अल्प वर्षा वाले क्षेत्र 

  • इस वर्ग में 50 से. से कम वर्षा वाले प्रदेश आते है।
  • उष्ण, शीतोष्ण, और शीत कटिबंधीय मरुस्थल, भी इसी वर्ग में आते है।

(2) ऋतुवत अंतर

  • विषुवतीय प्रदेशों तथा शीतोष्ण भूमियों के पश्चिमी भागों में वर्षा वर्ष भर होती है।
  • उन प्रदेशों के वर्षण का स्वरूप का सही चित्रण नहीं हो पाता जहाँ वर्षण की मात्रा में ऋतुवत अंतर एक सामान्य होता है।

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ऋतुवत अंतर के कुछ तथ्य

(01) विषुवतीय क्षेत्रों में संवहनीय वर्षा होती है, तथा शीतोष्ण क्षेत्रों में पछुआ पवनों द्वारा पर्वतीय वर्षा होती है।

(02) शीतकाल के समय दुनिया में केवल दो प्रतिशत भागों में वर्षा होती है।

दुनियां के इन दो प्रतिशत भागो में भूमध्य सागर और भारत का कोरोमंडल तट शामिल है।

(3) वर्षा के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

(i)  नमी की आपूर्ति

(ii)  पवनों की दिशा

(iii) महासागर धाराएं 

(iv) पर्वत की उपस्थिति 

(v) वायुदाब पेटियां 

संघनन की प्रक्रिया

गैस से द्रव बनने की परिघटना को “संघनन” कहते हैं।

संघनन  तब होता है, जब वायु का तापमान ओसांक से कम होता है या नीचे गिरता है, तब यह वायु की आर्द्रता और वायु की ठंडे होने की दर पर निर्भर करता है।

संघनन के रूप

(1) ओस

जब वायुमंडल नमी संघनित होकर जल बिंदुओं के रूप में ठोस पदार्थो के ठंडे धरातल पर जमा हो जाती है उसे “ओस” कहते है।

(2) पाला

जब ओसांक हिमांक बिंदु के नीचे होता है तो अतिरिक्त नमी अतिरिक्त नमी बर्फ के सूक्ष्म कणों बदल जाती है, इसे ही पाला कहते है।

(3) धुंध और कोहरा

संघनन जब जल बिंदुओं के रूप में वायु में तैरते रहते है तो इसे “धुंध” कहते है

धुंध में दृश्यता जब 1 कि.मी. से कम होती है तो इस रूप को “कोहरा” कहते है।

(4) बादल 

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