Zonal Councils

Zonal Councils in India.

क्षेत्रीय परिषदें-

भारतीय संविधान में क्षेत्रीय परिषदों के संबंध में किसी प्रकार का कोई प्रावधान नहीं किया गया था।

21 दिसंबर 1955 को- राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पूरे देश को पांच बड़े भागो या क्षत्रों में विभाजित करने तथा प्रत्येक क्षेत्र हेतु सलाहकार परिषदों का गठन करने का सुझाव प्रस्तुत किया।

राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 की धारा 15 में प्रावधान कर भारत में 4 क्षेत्रीय परिषदों तथा उत्तरी क्षेत्र मध्य क्षेत्र पश्चिमी क्षेत्र तथा दक्षिणी क्षेत्र परिषदों का गठन किया,

लेकिन नए राज्यों के निर्माण के परिणाम स्वरूप क्षेत्रीय परिषदों की संख्या 4 से बढ़ाकर 5 कर दी गई।

Zonal Councils-

5 क्षेत्रीय परिषदों के अंतर्गत विभिन्न राज्यों तथा संघ शासित प्रदेशों को सम्मिलित किया गया है-

(क). उत्तर क्षेत्रीय परिषद-

हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, तथा जम्मू-कश्मीर, चंडीगढ़ व दिल्ली संघ शासित प्रदेश।

(ख). मध्य क्षेत्रीय परिषद-

मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश।

(ग). पूर्वी क्षेत्रीय परिषद-

पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, उड़ीसा, सिक्किम, मेघालय, मणिपुर, नागालैंड, त्रिपुरा, मिजोरम, तथा अरुणाचल प्रदेश।

(घ). पश्चिमी क्षेत्रीय परिषद-

महाराष्ट्र, गुजरात,गोवा राज्य, दमन दीप तथा दादर एवं नगर हवेली संघ राज्य क्षेत्र।

(ड़). दक्षिण क्षेत्रीय परिषद-

आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, तथा पांडिचेरी संघ शासित क्षेत्र।

क्षत्रिय परिषदों का गठन-

इनका गठन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।

इसके सदस्यों में भारत के राष्ट्रपति या गृह मंत्री द्वारा मनोनीत-

(1). केंद्र सरकार का मंत्री।

(2). क्षेत्रीय परिषद के अधीन आने वाले राज्यों के मुख्यमंत्री व संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा नामजद दो अन्य मंत्री।

(3). संघ शासित प्रदेशों के मामले में राष्ट्रपति द्वारा प्रत्येक क्षेत्र से एक मनोनीत सदस्य।

(4). नीति आयोग के सदस्य(सलाहकार के रूप में ) तथा क्षेत्रीय परिषदों में सम्मिलित राज्य के मुख्य सचिव(सलाहकार के रूप में ) आदि होते हैं।

प्रत्येक क्षत्रिय परिषद का अध्यक्ष- भारत में राष्ट्रपति या गृह मंत्री द्वारा मनोनीत केंद्रीय मंत्री अध्यक्ष तथा संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्री उपाध्यक्ष कहलाते हैं यह प्रतिवर्ष बदलते रहते हैं।

क्षेत्रीय परिषदों के कार्य-

(क). क्षेत्रवादी तथा भाषावादी आधार पर पैदा होने वाली विघटनकारी प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना

(ख). विभिन्न क्षेत्रों में एक समान राजनीतिक संतुलन की अवस्था को निर्धारित करना

(ग). आर्थिक तथा सामाजिक मामलों हेतु समान नीति बनाने के संबंध में केंद्र तथा राज्यों को आपाती विचारों तथा अनुभवों को प्रदान करना

(घ). जनता में भावात्मक एकता की स्थापना करना

(ड़). अंतर्राष्ट्रीय परिवहन, भाषायी अल्पसंख्यकों, आर्थिक तथा सामाजिक योजनाओं, तथा राज्यों की सीमा संबंधी विवादों में क्षेत्रीय परिषदें परामर्श देने का कार्य भी करती हैं

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