दांडी मार्च
देश को एकजुट करने के लिए महात्मा गांधी को नमक एक शक्तिशाली प्रतीक दिखाई दिया।
31 जनवरी 1930 को उन्होंने वॉइस राय हीरोइन को एक खत लिखा-
इस खत में उन्होंने 11 मांगों का उल्लेख किया था इनमें से कुछ सामान्य मांगी थी, जबकि कुछ मांगे उद्योगपतियों से लेकर किसानों तक विभिन्न तबकों से जुड़ी थी।
गांधीजी इन मांगों के जरिए समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ना चाहते थे ताकि सभी उनके अभियान में शामिल हो सकें।
इनमें सबसे महत्वपूर्ण मांग नमक कर को खत्म करने के बारे में थी।
महात्मा गांधी का यह पत्र एक अल्टीमेटम की तरह था।
उन्होंने लिखा था कि अगर 11 मार्च तक उनकी मांगे नहीं मानी गई तो कांग्रेसी सविनय अवज्ञ आंदोलन छेड़ देगी।
इरविन झुकने को तैयार नहीं थे और फलस्वरूप महात्मा गांधी ने अपने 78 विश्वस्त वॉलंटियरों के साथ नमक यात्रा शुरू कर दी।
गांधीजी की टोली ने 24 दिन तक हर रोज 10 मील का सफर तय किया।
सविनय कानून तोड़ने का कार्यक्रम था।
ये ऐतिहासिक सत्याग्रह कार्यक्रम गाँधीजी सहित सत्या लोगों के द्वारा साबरमती आश्रम से समुद्र तट गाँव दांडी तक पैदल यात्रा करके 06 अप्रैल 1930 को नमक हाथ में लेकर नमक विरोधी कानून का अपमान किया गया था।
भारत में अंग्रेजों के शासनकाल के समय नमक उत्पादन और बिक्री के ऊपर बड़ी मात्रा में कर डाल दिया गया था, और नमक जीवन के लिए जरूरी चीज होने के कारण भारतवासियों को इस कानून से मुक्त करने और अपना अधिकार दिलवाने के लिए, ये सविनय अवज्ञा का कार्यक्रम किया गया था।
कानून तोड़ने करने के बाद सत्याग्रहियों ने अंग्रेजों की लाठियाँ खाई थी लेकिन पीछे नहीं मुदे थे।
12 मार्च 1930 को गाँधी जी ने इस आंदोलन का चालू किया।
इस आंदोलन में कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। जैसे-सी राजगोपालचारी, पंडित नेरू, आदि। ये आंदोलन पूरे एक साल तक चला और 1931 को गांधी-इर्विन के बीच समझौते से खत्म हो गया।
दांडी मार्च-
इसी आन्दोलन से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
इस आन्दोलन नें पूरे देश में अंग्रेजो के खिलाफ व्यापक जनसंघर्ष को जन्म दिया था।
गांधीजी के साथ सरोजनी नायडू ने नमक सत्याग्रह का नेतृत्व किया था।
तमिलनाडु में, सी. राजगोपालाचारी ने दांडी मार्च-त्रिचिनोपोली से वेदारन्यम तक मार्च का नेतृत्व किया।
गुजरात के धरसाना में, सरोजिनी नायडू, प्रसिद्ध कवयित्री, जो कांग्रेस की प्रमुख नेता थीं, और कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, ने सरकार के स्वामित्व वाले नमक डिपो में एक अहिंसक सत्याग्रहियों का नेतृत्व किया।
पुलिस द्वारा किए गए क्रूर लाठीचार्ज में 300 से अधिक सत्याग्रही गंभीर रूप से घायल हो गए, और दो मारे गए। प्रदर्शन, उत्पीड़न, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, और बाद में करों का भुगतान करने से इनकार कर दिया गया। आंदोलन में बड़ी संख्या में महिलाओं सहित लाखों लोगों ने भाग लिया।
सविनय अविज्ञा आन्दोलन शुरुआत-
दांडी सत्याग्रह से सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत हुई थी।
महात्मा गांधी ने अपनी माँग पर ज़ोर देने के लिए 6 अप्रैल, 1930 ई. को सविनय अविज्ञा आन्दोलन छेड़ा।
1931 की शुरुआत में-
1931 में लगानों के घंटे बिना आंदोलन वापस ले लिया गया
वायसराय इरविन द्वारा कांग्रेस को दूसरे गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के लिए मनाने के प्रयास किए गए।
गांधी और इरविन के बीच एक समझौता हुआ, जिसके अनुसार सरकार उन सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने के लिए सहमत हुई, जिनके खिलाफ हिंसा का कोई आरोप नहीं था।
कांग्रेस को सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करना था। कई राष्ट्रवादी नेता इस समझौते से नाखुश थे।
हालांकि, इसके कराची सत्र में जो मार्च 1931 में आयोजित किया गया था,और जिसकी अध्यक्षता वल्लभभाई पटेल ने की थी।
कांग्रेस ने समझौते को मंजूरी देने और दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने का फैसला किया।
सितंबर 1931 में हुए सम्मेलन में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने के लिए गांधी को चुना गया था।
गाँधी-इरविन समझौता(5 मार्च, 1931)–
सरकार ने भी गांधीजी व अन्य कांग्रेसी नेताओं को रिहा कर दिया।
5 मार्च 1931 को- गांधी जी तथा तत्कालीन वायसराय इरविन के बीच एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर हुए, इसे “दिल्ली समझौता” भी कहा जाता है।
इस समझौते में गांधी जी की कई मांगों को मान लिया गया।
कांग्रेस की ओर से सविनय अवज्ञ आंदोलन वापस लेने का आश्वासन दिया गया, तथा गांधीजी ने द्वितीय गोलमेज में भाग लेने का प्रस्ताव मान लिया।
जिस समय कांग्रेस का कराची अधिवेशन चल रहा था, उसी समय भगत सिंह राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी पर चढ़ाने की तैयारी की जा रही थी।
हिंसा के दोषी लोगों को, छोड़कर आन्दोलन में भाग लेने वाले सभी बन्दियों को रिहा कर दिया गया।
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन-
7 सितंबर से 1 दिसंबर 1931 तक सम्मेलन का आयोजन लंदन में किया गया।
गांधी जी ने कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में इस सम्मेलन में भाग लिया।
गोलमेज सम्मेलन असफल रहा।
भारत वापस आकर गांधीजी ने 1932 में पुनः सविनय अवज्ञ आंदोलन आरंभ किया।
दक्षिणपंथी नेता विंस्टन चर्चिल ने गांधीजी को “देशद्रोही फकीर” कहा।
अप्रैल 1934 में गांधी जी ने सविनय अवज्ञ आंदोलन वापस लेने का निर्णय लिया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन की विशेषताएं:
1) यह पहला देशव्यापी आंदोलन था जबकि अन्य सभी शहरी क्षेत्रों तक सीमित थे।
2) ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को भी अपनी भागीदारी दर्ज करने का अवसर मिला।
3) महिलाओं की भागीदारी बड़ी संख्या में थी,
कस्तूरबा गांधी, कमलादेवी चट्टोपाध्याय, अवंतिकाबाई गोखले, लीलावती मुंशी, हंसाबेन मेहता जैसी लोकप्रिय महिलाओं ने सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व किया।
4)अहिंसा इस आंदोलन का आदर्श वाक्य था।
5)अंग्रेजों द्वारा लगातार दमन पर, यह आंदोलन पीछे नहीं हटा,इस निडरता के कारण, भारतीय लोगों को निडर माना जाता था।
अप्रैल 1934 में गांधी जी ने सविनय अवज्ञ आंदोलन वापस लेने का निर्णय लिया।