Champaran Satyagraha was 1st started by Mahatma Gandhi in 1917.
चंपारण सत्याग्रह
बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध करा लिया
इस अनुबंध में किसानों को अपनी भूमि के 3/20 वें हिस्से में नील की खेती करने को मजबूर कर दिया
यह व्यवस्था “तिनकाठिया पद्धति” के नाम से जानी जाती है
19वीं सदी के अंत में जर्मनी में रसायनिक रंगों (डाई) का विकास हो गया, जिसने नील को बाजार से बाहर कर दिया
इससे बागान के मालिकों को नील की खेती बंद करनी पड़ी, किसान नील की खेती बंद होने से खुश थे
लेकिन किसानो को दूसरी फसल की खेती करने के लिए बागान मालिकों को कर देना पड़ना था और बागान मालिकों ने कर में अत्यधिक वृद्धि कर दी थी, जो की इस आदोलन कारण बना
Champaran Satyagraha
1917 में चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल के निमंत्रण पर गांधीजी चंपारण आए
उन्होंने अपने सहयोगियों ब्रजकिशोर, राजेंद्र प्रसाद, महादेव देसाई, नरहरी पारेख, जे बी कृपलानी, के साथ गांव का दौरा किया
गांधी जी ने नील किसानों के समर्थन में सत्याग्रह का पहली बार भारत में प्रयोग किया
सरकार में एक जांच आयोग गठित की जिसमें गांधी जी को भी शामिल किया गया
बागान मालिक अवैध वसूली का 25 फ़ीसदी वापस करने पर राजी हो गए
चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधीजी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रविंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान की