हिमालई क्षेत्रों में जन-आंदोलन (Part -01)
(01) सुकेत में जन आंदोलन (1862 ई.) (सबसे पहला जन आंदोलन)
राजा उग्रसेन का शासनकाल 1836 से 1876 ई. के बीच का रहा था,उसका वजीर नरोत्तम एक अत्याचारी प्रशासक था।
जनता उसके अत्याचारों से बहुत दुखी थी, वजीर नरोत्तम ने कुछ ब्राह्मण परिवारों पर दंड लगाया,लोगों ने इसका विरोध किया और वजीर को गिरफ्तार करने की मांग की परंतु राजा यह कार्य आगे टालता रहा।
राजा उग्रसेन के पुत्र रूद्र सेना ने भी उस वजीर का विरोध किया तथा अंत में राजा ने उसे हटाकर उसके स्थान पर धुंगल को वजीर बनाया।
धुंगल वजीर ने भी उच्चवर्ग के लोगों से भारी दंड वसूल करने आरंभ कर दिए।
धुंगल वजीर को पहाड़ी क्षेत्र के दौरे पर लोगों के द्वारा पकड़कर ‘गढ़-चवासी’ स्थान पर 12 दिन तक बंदी बनाकर रखा गया।
राजा उग्रसेन के कहने पर उसे छोड़ दिया गया और राजा ने ‘गढ़-चवासी’ स्थान पर खुद जाकर लोगों की शिकायतें सुनी।
राजा ने धुंगल वजीर के अपराधों को देखते हुए 20 हजार रुपये का जुर्माना के साथ 9 महीने की कैद की सजा सुनाई।
इस विद्रोह को सुकेत में ‘दूम्ह’ कहते हैं।
(02) सुकेत का जन-आंदोलन (1878 ई.)
हिमालई क्षेत्रों में जन-आंदोलन
1876 ई. में रूद्र सेन राजा की के गद्दी पर बैठने के बाद धुंगल को ही वजीर बनाया, उसने किसानों पर 4 रुपए, 8 रुपए प्रति खार(8 क्विंटल) कर लगाया।
उसने इस कर को ‘ढाल’ नाम दिया, उसने सासन की भूमि भी अपने अधिकार के साथ जमीदारों पर भी कर लगा दिए।
लोगों ने राजा से न्याय की मांग की, इस पर राजा का कोई ध्यान नहीं गया इस अवधि में राज परिवार के लोगों ने भी प्रजा को समर्थन दिया।
जालंधर के कमिश्नर ट्रिमलेट्रट बिगड़ती हुई स्थिति को देखकर सुकेत रियासत पहुंचे,उन्होंने वजीर धुंगल को निकाल दिया और करसोग के आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया।
आंदोलन का प्रभाव फिर भी कम नहीं हुआ और लोगों ने प्रशासन से असहयोग की नीति अपनाई।
अंग्रेज सरकार द्वारा पुनः जांच करने पर राजा को 1879 ई. में गद्दी से हटा दिया गया।
आंदोलनकारियों की मांग पर लगान में कमी कर दी गई और लकड़ी, घास, और पशु कर समाप्त कर दिया गया।
हिमालई क्षेत्रों में जन-आंदोलन
(03) नालागढ़ आंदोलन (1862 ई.)
हिमालई क्षेत्रों में जन-आंदोलन
राजा ईश्वरी सेन(1877-1911) जून 1877 में हिंडूर की गद्दी पर बैठा उसका वजीर कादिर खान था।
वजीर कादिर खान ने प्रजा पर नए कर लगाए और भूमि लगान बढ़ा दिया बढ़ा हुआ लगान देने में किसान असमर्थ थे।
राजा पर अनुनय-विनय का कोई असर नहीं हुआ जिसके विरोध में लोगों ने जुलूस निकाले और बड़े हुए करो तथा भू-राजस्व का विरोध किया।
अंग्रेज सरकार ने बिगड़ती हुई स्थिति को देखते हुए शिमला से सुपरिटेंडेंट हिल स्टेट स्वयं पुलिस बल लेकर नालागढ़ पहुंचे।
जन आंदोलन का दमन करके उनके नेता को पकड़ लिया गया और भीड़भाड़ को इधर-उधर भगा दिया।
लोगों ने अपनी मांगे मनबाई और राजा ने अंत में वजीर को निकाल दिया और लगान भी कम कर दिया।
लोगों की मांग तथा दबाव में बंदी किए गए आंदोलनकारियों को छोड़ दिया गया।
(04) सिरमौर का भूमि आंदोलन(1878ई.)
राजा शमशेर प्रकाश 1870 ई. में सिरमौर में मुंशी नंदलाल और मुंशी फतेह सिंह के तहत भूमि बंदोबस्त आरंभ किया गया, यह राजा का पहला बंदोबस्त था।
रेणुका के गिरी पार के क्षेत्र में जब बंदोबस्त शुरू हुआ तो लोगों ने समझा कि राजा उनसे लगान बढ़ा लेगा।
संगड़ाह के नंबरदार उछबू और प्रीतम सिंह ने लोगों की अगुवाई करके बंदोबस्त के कर्मचारियों से झगड़ा कर लिया और बंदोबस्त तहसीलदार मुंशी जीत सिंह को पकड़ने का प्रयास किया।
राजा ने विद्रोहियों को पकड़ने के लिए नाहन से सिपाही भेजें साथ ही शिमला में पहाड़ी रियासतों के सुपरिटेंडेंट को भी राजा ने पहले ही अवगत करा दिया।
पुलिस को देखकर प्रदर्शनकारी घर चले गए और उनके नेता उछबू और प्रीतम सिंह को पकड़कर राजा के पास नाहन भेज दिया गया, उन्हें सजा दी गई।
इसके पश्चात बंदोबस्त का काम ठीक चलता रहा।
यह ऐसा आंदोलन था जिसका आधार राजा को प्रजा के बीच संपर्क की कमी थी जिसके परिणाम स्वरूप किसान बंदोबस्त को लगान बढ़ाने की प्रक्रिया समझ बैठे थे।
(05) चंबा का किसान आंदोलन(1895ई.)
हिमालई क्षेत्रों में जन-आंदोलन
राजा श्याम सिंह गोविंदा के प्रशासन में किसानों पर भूमि लगान का भारी बोझ था, उसका वजीर गोविंद राम था।
इसके अतिरिक्त बेगार भी अधिक ली जाने लगी जिसके अंतर्गत प्रत्येक परिवार से एक व्यक्ति वर्ष में 6 महीने रियासत का मुफ्त में काम करता था।
यह देखकर भटियात क्षेत्र के किसानों ने इसके विरुद्ध आंदोलन आरंभ कर दिया, ‘बलाणा गांव’ के लोगों ने इसमें मुख्यता भाग लिया था।
लोगों ने लगान देने से इनकार कर दिया तथा वसूल करने वालों को गांव में घुसने नहीं दिया बेगार सेवा देनी भी बंद कर दी कई महीनों तक असहयोग आंदोलन चलता रहा।
अंग्रेज सरकार ने इसमें हस्तक्षेप किया, और आंदोलन की लाहौर के कमिश्नर ने जांच की।
आंदोलन के मुखिया मलाणा गांव के लारजा, बस्सी, के किरलु और बिलू को पकड़ कर दंडित किया गया और भी कई आंदोलनकारियों को बंदी बनाया गया।
सिरमौर रियासत का पझौता किसान आंदोलन(1939-45ई.)