CLASSIFICATION OF SOILS(मृदा का वर्गीकरण) 

CLASSIFICATION OF SOILS-

(CLASSIFICATION OF SOILS)मृदा वर्गीकरण सुव्यवस्थित विशेषताओं के साथ-साथ उपयोग में विकल्पों को निर्धारित करने वाले मानदंडों के आधार पर मृदा के व्यवस्थित वर्गीकरण से संबंधित है।

मृदा का वर्गीकरण:

जलोढ़ मृदा (Alluvial soil):

CLASSIFICATION OF SOIL
Alluvium soil

 

  • संपूर्ण उत्तरी मैदान जलोढ़ मृदा से बना है, यह मृदाएं हिमालया की तीन महत्वपूर्ण नदी तंत्रों- सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा लाए गए निक्षेपों से बनी है, यह मृदा राजस्थान और गुजरात तक फैली है ।
  • DELTA भी जलोढ़ मृदा से बने हैं।
  • इस मृदा में रेत सीट सिल्ट और मृतिका के विभिन्न अनुपात पाए जाते हैं।
  • जैसे हम नदी के मुहाने से घाटी में ऊपर की ओर जाते हैं, मृदा के कणों का आकार बढ़ता चला जाता है।
  • यह मृदा मैदानी और तटीय भागों में पाई जाती है, धान के लिए अति उपजाऊ है मृदा में पोटाश फास्फोरस और चुनायुक्त होती है।
  • गन्ने, चावल, गेहूं और अन्य अनाजों और दलहन फसलों के लिए उपयुक्त बनाती है।

काली मृदा (BLACK SOIL)

  • रेगुर मृदा भी कहा जाता है।
  • कपास की खेती के लिए उपायुक्त काली कपास मृदा भी कहा जाता है।
  • इस प्रकार की मिट्टी दक्कन पठार (बेसाल्ट) क्षेत्र के उत्तर पश्चिम में पाई जाती है, और लावा जनक शैलों से बनी है।
  • महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, मालवा, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के पठार पर पाई जाती है और दक्षिणी पूर्वी गोदावरी और कृष्णा नदियों की घाटियां तक फैली है।
  • कैल्शियम कार्बोनेट मैग्नीशियम पोटाश और चूने जैसे पौष्टिक तत्वों से परिपूर्ण होती है।
  • परंतु इसमें फास्फोरस की मात्रा कम होती है।

लाल और पीली मृदा (RED AND YELLOW CLAY)

  • CLASSIFICATION OF SOIL
    CLASSIFICATION OF SOIL-red soil

  • उड़ीसा छत्तीसगढ़ मध्य गंगा मैदान के दक्षिणी छोर पर और पश्चिमी घाट में पद पर पाई जाती है।
  • लाल रंग लौह धातु के प्रसार के कारण, पीला रंग इनमें जलयोजन के कारण होता है।
  • मोटे अनाज जैसे (ज्वार बाजरा) दलहन तिलहन एवं तंबाकू की खेती होती है।

CLASSIFICATION OF SOILS

लेटराइट मिट्टी(LATRERITE SOIL)

  • शब्द ग्रीक वर्ड(GREEK WORD) लेटर (LATER)से लिया गया है जिसका अर्थ ACIDIC है।
  • उच्च तापमान और अत्यधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है।
  • भारी वर्षा से अत्यधिक निक्षालन(LEACHING) का परिणाम है।
  • भारी वर्षा से अत्यधिक इसमें ह्यूमस की मात्रा कम होती है लोहा एवं एलुमिनियम अधिक होता है।
  • इस मृदा में खाद और रसायनिक उर्वरक डालकर ही खेती की जा सकती है।
  • कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, और उड़ीसा तथा असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • इस मृदा पर कर्नाटक, केरल, और तमिलनाडु में चाय और कॉफी केरल, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश की लाल लेटराइट मृदा पर काजू की फसल के लिए अत्यधिक उपयुक्त है।

मरुस्थलीय मृदा(DESERT SOIL)

  • रंग लाल और भूरा यह मिट्टी रेतीली और लवणीय होती है।
  • ह्यूमस और नमी की मात्रा कम होती है।
  • जिसके कारण मृदा में जल अतः रसना (infiltration) अवरुद्ध हो जाता है।
  • मोटा अनाज ज्वार, बाजरा, रागी तिलहन पैदा किए जाते हैं।
  • राजस्थान, सौराष्ट्र, कच्छ, हरियाणा एवं दक्षिणी पंजाब आदि में पाई जाती है।

पर्वतीय या बनीय मिट्टी(MOUNTAIN SOIL)

  • यह मिटियाँ पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • नदी घाटियों में मृदाएं दोमट और सिल्टदार होती हैं ऊपरी ढालों पर मोटे कणो में होती है।
  • एसिडिक और ह्यूमस रहित होती है।
  • तमिलनाडु कर्नाटक मणिपुर आदि जगहों पर और हिमालय के पर्वतीय भागों में यह मिट्टी पायी जाती है।

लवणीय एवं क्षारीय मिट्टी(SALINE AND ALKALLINE SOIL )

  • रेत उसर या कल्लर के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में मिलती है।
  • सोडियम, मैग्निशियम, कैलशियम, नाइट्रोजन, आदि होता है, नारियल वह ताड़ की कृषि होती है।
  • राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र में पाई जाती है।

पीट और जैविक मिट्टी(PEAT AND ORGANIC SOIL)

  • कार्बनिक एवं जैविक पदार्थों की अधिकता होती है।
  • केरल के एल.पी जिला उत्तराखंड के अल्मोड़ा, सुंदरवन डेल्टा, एवं अन्य निचले डेल्टाई क्षेत्रों में।

 

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