उत्तर पूर्व के सीमांत जनजातीय आंदोलन

उत्तर पूर्व के सीमांत जनजातीय आंदोलन

ईस्ट इंडिया कंपनी के समय उत्तर पूर्व में हुए कुछ आंदोलन-

(1) अहोम विद्रोह- (1828-33,असम)-

  • बर्मा युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अपने वादे को पूरा ना करने के कारण यह विद्रोह शुरू हुआ।
  • कंपनी ने बल का प्रयोग कर विद्रोह को कुचल दिया और इसके साथ राज्य का विभाजन कर दिया।

(2) खासी विद्रोह (1830 ई.)- 

  • अंग्रेजों द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों में हस्तक्षेप के विरोध में यह विद्रोह जयंतिया एवं गारो पहाड़ी क्षेत्रों में चला।
  • इस विद्रोह का नेतृत्व नूनकलोव शासक तीर्थ सिंह, बार मानिक, और मुकुंद सिंह, ने किया।

(3) सिंगफो विद्रोह(1830 ई.,असम)-

  • विद्रोह का कारण-  इस क्षेत्र में अंग्रेजों द्वारा अधिपत्य स्थापित करने का प्रयास करना था। इस विद्रोह को कुचल दिया गया।
  • विद्रोह का नेतृत्व रनुआ गोसाई ने किया।

(4) कुकी विद्रोह (1918-19, मणिपुर)- 

  • यह विद्रोह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों द्वारा मजदूरों की भर्ती किए जाने की नीति के विरोध में हुआ।

(5) त्रिपुरा में विद्रोह

  • यह विद्रोह इस क्षेत्र में बाहरी लोगों को बसाने एवं सरकार द्वारा गृह कर बढ़ाने के विरोध में शुरू हुआ।
  • विद्रोह का नेतृत्व- (1) परीक्षित जमातिया के नेतृत्व में, (1863),  (2) रतनामणि के नेतृत्व में,(1942-43),   (3) भारती सिंह के नेतृत्व में 1920।

उत्तर पूर्व के सीमांत जनजातीय आंदोलन

(6) जलियांगसंग विद्रोह (1920,मणिपुर)- 

  • विद्रोह अंग्रेजों द्वारा कुकियो के आक्रमण(1917-19) से उनकी रक्षा में असफल रहने के विरोध में हुआ।
  • विद्रोह का नेतृत्व- जेमी ,लियांगमेई एवं रंगमेई जनजातियों ने किया।

(7) नागा आंदोलन (1905-31)

  • मणिपुर यह विद्रोह अंग्रेजी राज के विरोध एवं नागा राज की स्थापना के लिए किया गया।
  • विद्रोह का नेतृत्व- जदोनांग ने किया।
  • जदोनांग को गिरफ्तार कर अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया। इसके बाद विद्रोह का नेतृत्व युवा नागा महिला गैडिनलियु ने किया, बाद में यह आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष से जुड़ गया।
  • आजाद हिंद फौज और जवाहरलाल नेहरू ने गैडिनलियु को “रानी” की उपाधि से विभूषित किया।

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