जन-आंदोलन (Part-02)
(06) बाघल में भूमि आंदोलन (1897 ई.)
राजा ध्यान सिंह के समय में अत्यधिक भूमि लगान के विरोध में 1897 ई. से लेकर 1902 ई. तक लोगों ने आंदोलन चलाया।
भूमि लगान में भारी वृद्धि, चरागाहों की कमी तथा उन जंगली जानवरों के मरने पर रोक लगाने पर जो उनकी फसलों को नष्ट कर देते थे के विरोध में किसानों ने आंदोलन किया।
बड़ोग गांव के ब्राह्मणों ने गांव में भारी जनसभा का आयोजन किया और फिर वह राजा के पास भी गए।
अंग्रेज सरकार के हस्तक्षेप करने पर यात्री सरकार ने लगान में कमी करके लोगों को शांत किया परंतु कुछ विद्रोहियों को पकड़कर रियासत को सौंप दिया।
(07) क्योंथल में भूमि आंदोलन(1897 ई.)
जन-आंदोलन (Part-02)
1857 ई. में क्योंथल रियासत में भी भूमि संबंधी आक्रोश फैल गया था चार परगना के लोगों ने लगान तथा बेगार देना बंद कर दिया।
अंग्रेज अधिकारी सैडमैन और टॉमस ने इस असंतोष का निपटारा करने के लिए कहा परंतु राजा बलबीर सेन इससे निपट ना सका।
अतः अंग्रेज सरकार ने मियां दुर्गा सिंह को मैनेजर के रूप में 11 जुलाई 1898 ई. को नियुक्त किया और उसने स्थिति को ठीक किया।
(08)ठियोग और बेजा में आंदोलन(1898ई.)
जन-आंदोलन (Part-02)
1898 ई. में बेजा और ठियोग ठकुराईयों में भी विद्रोह की स्थिति उत्पन्न हुई।
बेजा में लोगों ने ठाकुर के विरुद्ध आंदोलन किया और रियासत के दो सिपाहियों को बंदी बना लिया।
बेजा के शासक उदय चंद ने अंग्रेज सरकार की सहायता से इस आंदोलन को दबा दिया और उनके कुछ नेताओं को बंदी बना लिया।
1898 ई. में ठियोग ठकुराईयों में बंदोबस्त में गड़बड़ी के विद्रोह में किसानों ने आंदोलन किया और उन्होंने वेगार देने से इनकार कर दिया।
रियासती सरकार ने अंग्रेजी सरकार की सहायता से लोगों को शांत किया।
(09) बाघल में विद्रोह (1905ई.)
जन-आंदोलन (Part-02)
1905 ई. में बाघल रियासत में फिर से विद्रोह फैल गया राजा विक्रम सिंह उस समय अवयस्क था।
राज्य का प्रबंध मियां मानसिंह के हाथ में था।
इसकी शुरुआत तो राज परिवार के अपने घपले से आरंभ हुई थी,बाद में क्षेत्र के सभी कनैत लोगों ने राजा के प्रतिनिधि, शासक और उसके भाई के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
लोगों ने बढ़ा लगान देना बंद कर दिया और राज्य में अशांति फैल गई।
अंत में शिमला की पहाड़ी रियासतों के अंग्रेज सुपरिटेंडेंट ने बाघल की राजधानी अर्की जाकर इसमें हस्तक्षेप किया और आंदोलनकारियों को न्याय का आश्वासन देकर शांत किया।
साथी मियां शेर सिंह को कुम्हारसेन से स्थानांतरण करके उसे काउंसिल का सदस्य बनाया।
मियां शेर सिंह ने भूमि-बंदोबस्त आरंभ किया और अन्य सुधार करके शांति स्थापित कर दी।
(10) डोडरा-क्वार में विद्रोह (1906 ई.)
जन-आंदोलन (Part-02)
1906 में बुशहर के गढ़वाल के साथ लगते क्षेत्र डोडरा-क्वार में एक विद्रोह उठ खड़ा हुआ था।
इस क्षेत्र का प्रशासन राजा की ओर से किन्नौर के गांव पवारी के वंशानुगत वज़ीर परिवार के रणबहादुर सिंह के हाथ में था।
उसने राजा के विरुद्ध विद्रोह करके डोडरा- क्वार को स्वतंत्र बनाकर अपने अधीन करने का प्रयास किया उसने वहां की राजकीय आए भी बुशहर के खजाने में जमा करनी बंद कर दी।
उसने राजा की अवज्ञा ही नहीं की बल्कि अंग्रेज सरकार के दबदबे का भी परवाह नहीं की, रणबहादुर उस समय राष्ट्रवादी था।
अंत में उसे शिमला पहाड़ी रियासतों के अंग्रेजी अधिकारी के आदेश पर 1906 ई. में पकड़कर शिमला लाया गया और बंदी बना लिया गया।
बाद में उसे कैद से मुक्त कर दिया गया लेकिन इसके बाद वह हड़प की हुई राशि को वापस ना कर सका उसकी मृत्यु शिमला में ही हो गई।
डोडरा-क्वार जिला शिमला का अति पिछड़ा क्षेत्र है जहां कृषि तथा पशुपालन ही लोगों का प्रमुख व्यवसाय है।
हिमालई क्षेत्रों में जन-आंदोलन (Part 01)