Art of Himachal Pradesh

Art of Himachal Pradesh

Details of Art of Himachal Pradesh

कला

हिमाचल प्रदेश की चित्रकला भारतीय चित्रकला के इतिहास में अपना विशिष्ट महत्व रखती है

19वीं और 20वीं शताब्दी में हिमाचल प्रदेश की चित्रकला की कुछ सुंदर कृतियां प्रकाश में आई

19वीं शताब्दी में मेटकॉफ ने कांगड़ा में इस शैली के कुछ चित्रों की खोज की

1908-10 के बीच डॉ आनंद कुमारस्वामी ने इस विषय को लेकर काफी लेख लिखे तथा भाषण दिए

1912 ईस्वी में डॉ स्वामी ने राजपूत कला को मुगल कला से विभिन्न बताया और उन्होंने राजपूत कला को दो भागों में विभक्त किया

(1 )पहाड़ी कला  (2) राजस्थानी कला

पहाड़ी कला का क्षेत्र पंजाब की पहाड़ी रियासतें तथा राजस्थानी कला का क्षेत्र राजस्थान का मैदानी क्षेत्र था

1916 ई. में डॉ आनंद कुमार की पुस्तक “राजपूत पेंटिंगज” प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने पहाड़ी कलाकृतियों की सांस्कृतिक भूमिका पर प्रकाश डाला

1926 ई. में ओ.सी. गांगुली की पुस्तक “मास्टर पीसिज ऑफ राजपूत पेंटिंग्स” प्रकाशित हुई

1926 में ही एन.सी. मेहता की पुस्तक “स्टडीज इन इंडियन पेंटिंग्स” प्रकाशित हुई

लेकिन इन पुस्तकों में क्रमशः जन्म के स्थान तथा तिथियों में अशुद्ता और कलाकृतियों को पहचानने में भूल ही गई

1931 ईस्वी में जे.सी. फ्रेंच की पुस्तक “हिमालयन आर्ट” प्रकाशित हुई, यह पुस्तक उनके 1930 ईस्वी में गुलेर, मंडी, कुल्लू, अर्की, चंबा, तथा लंबागांव, आदि रियासतों का भ्रमण करने के पश्चात लिखी गई ,

और इस पुस्तक से हिमाचल प्रदेश की चित्रकला का अध्ययन करने वाले विद्वानों को बहुत मदद मिली

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1952 ई. में डब्लयु जी आर्चर की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई, जो कि “इंडियन पेंटिंग्स इन द पंजाब हिल्स और “कांगड़ा पेंटिंग” थी

कांगड़ा घाटी पर गहन अध्ययन करके डॉ. एम. एस. रन्धावा ने कई निबंध पुस्तकें लिखी

इनकी पुस्तकें में “बसोहली पेंटिंग” “कांगड़ा वैली पेंटिंग” तथा “कृष्णा लीजेंड इन पहाड़ी पेंटिंग्स” है

कार्ल खंडेलवाल द्वारा लिखित पुस्तक “पहाड़ी मिनिएचर पेंटिंग” है

(1) पहाड़ी चित्रकला 

बसौहली शैली

यह शैली गुलेर या कांगड़ा शैली से ही पुरानी है

यह शैली जम्मू से आई थी

इसका प्रभाव मंडी, चम्बा, एवं कुल्लू शैलियों पर पड़ा है

काँगड़ा शैली

इस शैली के जन्मदाता गुलेर की कलम है

यही से काँगड़ा कलम, चम्बा कलम, मंडी कलम, कुल्लू कलम, आदि चित्रकला कलमों का विकास हुआ है

काँगड़ा शैली को गुलेर शैली भी कहा जाता है

पहाड़ी चित्रकला राजा संसारचंद के शासनकाल में समृद्धि की चरम सीमा तक पहुंची

नादौन, सुजानपुर-टिहरा, और आलमपुर काँगड़ा शैली के प्रमुख केंद्र थे

काँगड़ा शैली सेऊ वंश की देन है

सेऊ उसका पुत्र मनकू और नैनसुख गुलेर के प्रसिद्ध चित्रकार थे

1742 ई. में नैनसुख ने राजा बलवंत सिंह (जसरोटा-जम्मू ) के आश्रम में चित्रांकन कार्य आरंभ किया था

गढ़वाल से आया भोलाराम काँगड़ा शैली का अच्छा चित्रकार था

इस शैली में गीत गोविंद, बारामासा, सतसई, रामायण, भगवत गीता, जैसे विषयों का रेखांकन हुआ है

मेटकॉफ ने सर्वप्रथम काँगड़ा शैली के चित्रों की खोज की

चम्बा कलम एवं रुमाल कला

इस कला का विकास राजा राजसिंह के शासनकाल में हुआ

1765 ई. में चम्बा कला का प्रसिद्ध चित्रकार निक्का चम्बा आया था

चम्बा का रंग महल भित्ति चित्र शैली का प्रमाण है, जिसका निर्माण कार्य राजा उम्मेद सिंह ने शुरू करवाया था

राजा राज सिंह के दरबार के प्रसिद्ध कलाकार

निक्का, राझां, छज्जू, और हरकू

चंबा कला का उद्गम

इस कला का उद्गम बसौहली और गुलेर चित्रकला के प्रभाव से हुआ है

विक्टोरिया अल्बर्ट संग्रहालय लंदन में चम्बा के राजा उग्रसिंह का पोर्टेट सुरक्षित है

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चम्बा रुमाल

चम्बा रुमाल का विकास राजा राज सिंह और रानी शारदा के समय सर्वाधिक हुआ है

1873 ई. में चम्बा के शासक गोपाल सिंह ने चम्बा रुमाल पर कुरुक्षेत्र युद्ध के लघु चित्रों की कृति को ब्रिटिश सरकार को भेंट किया था जो विक्टोरिया संग्राहलय लंदन में सुरक्षित है

चम्बा रुमाल पर लघु चित्रकला का प्रशिक्षण भूरी सिंह संग्रहालय चम्बा में दिया जाता है

बंगद्वारी

चम्बा में विवाह के अवसरों पर भित्ति चित्र बंगद्वारी बनाने की परम्परा है, बंगद्वारी में दरवाजों पर चित्र बनाये जाते है

अन्य कलमें और कलाकार  

फत्तू और पदमा संसारचंद के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे

नूरपुर के गोलू, सिरमौर के अंगद, कुल्लू के भगवान और संजू, अन्य प्रमुख चित्रकार थे

कुल्लू के राजा मानसिंह के समय रामायण पर चित्रकला बनाई गई

कुल्लू में राजा जगत सिंह के कार्यालय से पहाड़ी लघु चित्रकला आरंभ हुई थी

सुकेत रियासत की राजधानी सुंदर नगर में पहाड़ी चित्रकला राजा विक्रम सिंह के शासनकाल में समृद्धि की चरम सीमा पर थी

कांगड़ा के राजा अनिरुद्ध चंद ने बाघल की राजधानी अर्की में अर्की कलम का विकास किया

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