The Earth’s structure is divided into four major components: the crust, the mantle, the outer core, and the inner core
पृथ्वी की संरचना (Earth’s structure)
पृथ्वी बहुत सारी परतों से बनी हुई है।
परतों के बनने के समय लौहा एवं निकिल जैसे तत्व केंद्र में जमा हो गए और हल्के पदार्थ, जैसे- सिलिकन, एलुमिनियम बाहर की ओर जमा हो गए।
पृथ्वी की मुख्यतः तीन परतें मानी गई हैं –
1. क्रस्ट
2. मैंटल
3. क्रोड
Earth’s structure
भूपटल या भूपर्पटी(CRUST)
इसकी मोटाई 5-30 किलोमीटर तक पाई जाती है।
भूपटल की सतह के नीचे इसकी गहराई 0-35 कि.मी तक है।
ऊपरी भूपर्पटी की सतह के नीचे इसकी गहराई 35-60 कि.मी तक है।
इस परत की निचली सीमा को “मोहोरोविसिक असंबद्धता या मोहो असंबद्धता” कहा जाता है।
- पृथ्वी की बाहरी सतह जिस पर महाद्वीप तथा महासागर स्थित हैं। वो भूपटल या क्रस्ट कहलाता है।
- सियाल (SIAL)अर्थात सिलिका एवं एल्युमीनियम से भूपटल की रचना हुई है।
- SI=SILICA+AL=Aluminium= SIAL
- सर्वप्रथम “डेली” ने सियाल शब्द का प्रयोग किया था।
- भूपटल की बाहरी परत अवसादी चट्टानों से बनी है।
- आंतरिक परत “ग्रेनाइट” से बनी है।
note:
भूपटल: पृथ्वी की ऊपरी सतह
Earth’s structure| Each layer has a unique chemical composition, physical state, and can impact life on Earth’s surface
मैंटल
मैंटल की मोटाई लगभग 2895 किमी. है। यह अद्र्ध-ठोस अवस्था में है और सीमा कहलाती।
इसकी सतह के नीचे इसकी गहराई 35-2890 कि.मी तक है।
एक संक्रमण परत जो मैंटल को क्रोड या कोर से विभक्त करती है उसे “गुटेनबर्ग असंबद्धता” कहते हैं।
- मैंटल बेसाल्ट चट्टानों से बनी है, यह परत सिलिका व् मैग्नीशियम की बनी है।
- निचली परत में क्षारीय पदार्थों की अधिकता है, इसी परत से ज्वालामुखी विस्फोट के समय लावा बाहर आता है।
- यह परत मुख्यतः महासागरों के नीचे होती है।
- बेसाल्ट चट्टानों से महासागरीय सतह का निर्माण हुआ है।
- ये जो मैंटल का हिस्सा है इसमें मैग्मा चेंबर पाए जाते हैं, इसका औसत घनत्व 3.5 gram/c.m3 से 5.5 gram/c.m3 है।
- इसको “व्हाइट ऑफ द अर्थ” के नाम से भी जाना जाता है।
- भूपटल एवं मेैंटल का सबसे ऊपरी भाग (100 किलोमीटर) मिलकर स्थल मंडल का निर्माण करते हैं।
क्रोड
क्रोड़ दो भागों में विभक्त है:
- बाह्रा क्रोड
- आंतरिक क्रोड
- क्रोड का निर्माण लगभग 88.8 फीसदी आयरन से हुआ है।
- सीमा (SIMA) परत के नीचे पृथ्वी की तीसरी तथा अंतिम परत पाई जाती है जिसे क्रोड (CORE) कहते हैं।
- इसमें निकिल (Ni) तथा लोहा (Fe) की प्रधानता होती है इसलिए इस परत का नाम “निफे” (Ni+Fe) रखा गया है।
- यह 2900 किलोमीटर की गहराई से पृथ्वी के केंद्र तक विस्तृत है इसका घनत्व 11 से 12 तक है।
- क्रोड का भार पृथ्वी के भार का लगभग 1/3 है तथा इसका आयतन पृथ्वी के आयतन का लगभग 1/6 भाग है।
बाह्रा क्रोड
- बाह्रा क्रोड सतह के नीचे लगभग 2900 से 5150 किलोमीटर तक फैला हुआ है।
- यह भाग द्रव अवस्था में है, क्योंकि बाह्रा क्रोड में भूकंप की द्वितीयक लहरें या S-तरंगे प्रवेश नहीं कर पाती है।
आंतरिक क्रोड
- आंतरिक क्रोड लगभग 5150 किलोमीटर से 6371 किलोमीटर पर पृथ्वी के केन्द्र तक फैला हुआ है ।
- इसका औसत घनत्व 13 gm/ c.m3 है, यह पृथ्वी का लगभग 16% भाग घेरे हुए हैं।
- आंतरिक क्रोड का भाग ठोस है और इसमें भूकंप की P-लहरों की गति कम होती है, जो की 11.23 किलोमीटर प्रति सेकंड हो जाती है
Earth’s structure
पृथ्वी के तत्व
तत्व | भूपृष्ठ में मात्रा(%) |
ऑक्सीजन | 46.8 |
सिलिकॉन | 27.7 |
एल्यूमिनियम | 8.1 |
लोहा | 5.0 |
कैल्शियम | 3.6 |
सोडियम | 2.83 |
निकिल | 1.8 |
चट्टान
- पृथ्वी की सतह से 16 किमी. की गहराई तक पृथ्वी की भूपर्पटी में पाए जाने वाले 95% पदार्थ चट्टानों के रूप में पाए जाते हैं।
- भूपटल के वे सभी पदार्थ, जो खनिज नहीं हैं, चट्टानें कहलाती हैं।
- पृथ्वी की संपूर्ण बाह्रा परत, जिस पर महाद्वीप एवं महासागर स्थित है, स्थलमंडल कहलाती है।
- इसके कुल 29% भाग पर स्थल और 71% भाग पर जल है।
- पृथ्वी की सतह के कठोर भाग को चट्टान कहते हैं।
चट्टानों की उत्पत्ति
- पृथ्वी के निर्माण के समय इसका तापमान बहुत अधिक था।
- मौसम ठंडे होने के कारण आग्नेय चट्टानों का निर्माण हुआ था।
- भूपटल में पाई जाने वाली चट्टानों में 75% परतदार चट्टाने हैं तथा 25% आग्नेय और रूपांतरित चट्टानें।
चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-
- आग्नेय चट्टान
- परतदार चट्टान
- रूपांतरित चट्टान
आग्नेय चट्टान
- आग्नेय चट्टानों को प्रारंभिक चट्टानें(Primary Rocks) भी कहा जाता है क्योंकि इन चट्टानों का निर्माण सबसे पहले हुआ था।
- यह चट्टाने स्थूल, परतरहित, कठोर एवं ज़ीवाश्मरहित होती है।
- बेसाल्ट चट्टान के क्षरण से काली मिट्टी का निर्माण होता है. इस में लोहे की मात्रा सर्वाधिक होती है।
- आग्नेय चट्टान में जीवाश्म नहीं पाया जाता है
- कोडरमा (झारखंड) में पाया जाने वाला “अभ्रक” पैगमाटाइट शैलों में पाया जाता है।
आग्नेय शैलों में पाए जाने खनिज
- आग्नेय शैलों में लोहा तथा मैग्नीशियम युक्त सिलिकेट खनिज अधिक होते हैं।
- लोहा, निकिल, तांबा, सीसा, जस्ता, सोना, हीरा आदि भी आग्नेय शैलों में पाए जाते हैं।
आग्नेय चट्टानों के उदाहरण:
- ग्रेनाइट, पेग्मेटाइट, कायनाइट, डायोराइट, बिटुमिनस कोयला
आंतरिक आग्नेय चट्टानें
पृथ्वी के आंतरिक भाग में पिघला हुए मैग्मा जब ठंडा होता है तो वो चट्टानों का रूप धारण कर लेता है, इन चट्टानों को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है।
डाइक (Dyke)
डाइक का निर्माण होता है, जब मैग्मा लंबवत दरार में जम जाता है
उदाहरण-
- झारखंड के सिंहभूम जिले में अनेक डाइक दिखाई देते है।
सिल (Sill)
- जब मैग्मा क्षैतिज या समानांतर परतों में जमता है,उसे सिल कहते है, 1 मीटर से कम मोटाई वाले सिल को “शीट” कहते हैं।
लैकोलिथ (Lacolith)
जब मैग्मा ऊपर की परत को जोर से ऊपर की ओर उठाता है और गुंबद आकार रूप में जम जाता है, मैग्मा के तेजी से ऊपर उठने के कारण यह गुंबद आकार पिण्ड छतरी नुमा दिखाई देता है,इसे लैकोलिथ ( Lacolith ) कहते है।
Earth’s structure
बैथोलिथ (Batholith)
बैथोलिथ सबसे बड़ा आग्नेय चट्टानी पिंड होता है, बैथोलिथ का निर्माण अंतर्वेधी चट्टानों से होता है, बैथोलिथ एक पातालीय पिंड है, जो गुंबद के आकार का होता है, बैथोलिथ के किनारे खड़े होते हैं तथा इसका ऊपरी तल विषम होता है, बैथोलिथ मूल रूप से ग्रेनाइट का बना होता है।
Note: अंतर्वेधी आग्नेय चट्टान ऐसी आग्नेय चट्टानें है जो मैग्मा के ऊपर उठ कर धरातलीय सतह से नीचे ही जम जाने से निर्मित होती हैं। इन्हें पातालीय शैलें भी कहा जाता है। ये धीरे-धीरे ठंडे होकर जमने के कारण बहुधा रवेदार संरचना वाली होती हैं
उदाहरण –
(01) अमेरिका का एक इदाहो बैथोलिथ,
(02) पश्चिम कनाडा का कोस्ट रेज बैथोलिथ यह मूलतः ग्रेनाइट से बना होता है, छोटे आकार के बैथोलिथ को “स्टॉक” कहते हैं।
लैपोलिथ (Lapolith)
मैग्मा जब जमकर तश्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है
उदाहरण
दक्षिण अमेरिका में मिलते हैं।
तश्तरीनुमा आकार: थाली के आकार का
फैकोलिथ (Phacolith)
मैग्मा जब लहरदार आकृति में जमता है, तो इसे फैकोलिथ कहते हैं इसमें अभिनति तथा अपनति आकृतियां बनती हैं।
अवसादी या परतदार चट्टान
- यह आग्नेय और रूपातंत्रित चट्टानों के अपक्षय एवं अपरदन से प्राप्त पदार्थों के किसी एक जगह पर इकठ्ठा होने से निर्मित होती है।
- खनिज तेल प्राचीन संस्त्रित अवसादी शैलों में पाए जाते हैं।
- “लोयस” वायु निर्मित अवसादी शैलों में प्रमुख है
- “मोरेन” हिमानी कृत अवसादी शैलों में प्रमुख है।
- “आगरा का किला” तथा दिल्ली का “लाल किला” बलुआ पत्थर अवसादी चट्टानों (Sedimentary Rock) का बना है।
- दामोदर, महानदी तथा गोदावरी नदी बेसिनों की अवसादी चट्टानों में कोयला पाया जाता है।
अवसादी या परतदार चट्टानों की विशेषताएं –
- परतदार, जीवाश्मों की उपस्थिति
- सरंध्रता, तीव्र अपरदन, जैसे- बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, स्लेट, कंग्लोमरेट, नमक, शेलखड़ी आदि।
Note:
अपक्षय (Weathering)
वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी की सतह पर मौजूद चट्टानें में टूट-फूट होती है। यह अपरदन से अलग है, क्योंकि इसमें टूटने से निर्मित भूपदार्थों का एक जगह से दूसरी जगह स्थानान्तरण या परिवहन नहीं होता।
अपरदन (Erosion)
वह प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानों का विखंडन और परिणामस्वरूप निकले ढीले पदार्थों का जल, पवन, इत्यादि प्रक्रमों द्वारा स्थानांतरण होता है। अपरदन के प्रक्रमों में वायु, जल तथा हिमनद और सागरीय लहरें प्रमुख हैं।
Earth’s structure| Movement in the mantle caused by variations in heat from the core, cause the plates to shift, which can cause earthquakes and volcanic eruptions.
कायांतरित चट्टान या रूपांतरित चट्टान
- अत्याधिक ताप, दाब एवं रासायनिक प्रक्रिया के परिणाम आग्नेय और अवसादी चट्टानें स्वरुप बदल लेती है, इन्हें “कायांतरित चट्टान” (Metamorphic Rock) कहा जाता है।
- कायांतरित चट्टानों की पहचान उनकी कठोरता, घनी संरचना तथा परस्पर बंधे हुए रवों के रूप में होती है।
- पृथ्वी के महाद्वीपीय पटल का अधिकांश भाग आग्नेय एवं कायांतरित चट्टानों का बना है।
भूपटल पर परिवर्तन दो बलों के कारण होता है:
अंतर्जात बल
पृथ्वी के भीतरी भाग से उत्पन्न बल को कहा जाता है।
बहिर्जात बल-
पृथ्वी की सतह पर उत्तपन होने वाले बल को कहा जाता है।
अंतर्जात बल दो प्रकार का होता है:
आकष्मिक बल
इस बल से भूपटल में ऐसी आकस्मिक घटनाओं का सृजन होता है, जो विनाशकारी परिणाम लाती है, उदाहरण- भूकंप, भूस्खलन तथा ज्वालामुखी
पटल विरूपणी बल- ये बल क्षैतिज एवं लंबवत दोनों रूपों में क्रियाशील होते हैं जिससे बहुत वर्षों बाद किसी बड़े स्थलरूप का निर्माण होता है।
पटल विरूपणी बल/संचालन दो प्रकार के होते हैं:
महादेशीय संचलन (Epierogenetic Movement) –इस संचलन से महाद्वीपीय भागों का निर्माण एवं उसमें उत्थान, निर्गमन तथा निमज्जन की क्रियाएं घटित होती हैं यह संचलन लंबवत होती है।
पर्वतीय संचलन (Orogenetic Movement)- इस संचलन से धरातल में भरंश (Fault), दरार (Cracks), संवलन (Warp ) तथा वलन (Folds) होते हैं, क्षैतिज संचलन से तनाव अथवा दबाव से पर्वतों का निर्माण होता है।