Kangra (कांगड़ा)-(भाग-1)
कांगड़ा जिले का नाम कांगड़ा (kangra) शहर से लिया गया है। जिला कांगड़ा का असली नाम नगर कोटा नगरकोट था।
यह रियासत प्रदेश की सबसे पुरानी रियासत मानी गई है।
विकासखंड- 15पर्वत श्रृंखलाएं-
धौलाधार श्रंखला- यहश्रृंखला व्यास नदी के टाइम किनारे से जिला कुल्लू से सीमा बनाते हुए प्रारंभ होकर सौरी दर्रा तक जाती है,यहां चंबा के हाथीधार के समानांतर चलती है।
पपरोला श्रंखला-
कांगड़ा घाटी को बीड़ भंगहाल से अलग करती हुई, पपरोला के समीप बिनबा नदी को पार करती हुई, मंडी जिला की तरफ जाती है जहां इसका नाम सिकंदर धार है।
नदियां-
व्यास नदी का उद्गम पीर पंजाल श्रंखला में रोहतांग दर्रा के समीप 3978 मीटर की ऊंचाई से होता है।
ब्यास नदी उद्गम के बाद कुल्लू व मंडी जिलों से बहती हुई,पालमपुर तहसील के संधोल शहर में कांगड़ा जिले में प्रवेश करती है।
ब्यास नदी हाजीपुर के समीप मिरथल घाट कांगड़ा जिले को छोड़कर पंजाब के गुरदासपुर जिले में प्रवेश करती है।
Kangra(कांगड़ा) जिला में व्यास नदी की सहायक खड्डे-
(1) बिनबा नदी– नदी इसका उद्गम स्थल बैजनाथ है तथा यह संधोल के समीप व्यास में मिलती हे।
(2) न्युगल खड्ड- सुजानपुर टिहरा के सामने व्यास नदी में मिलती है।
(3) बाणगंगा तथा इसकी सहायक खड्डे –
देहर व चक्की नाला, पंजाब राज्य के गुरदासपुर जिले के साथ कांगड़ा जिले की सीमा बनाती है।
प्राकृतिक गैस- कांगड़ा के ज्वालामुखी में प्राकृतिक गैस के भंडार पाए गए हैं।
परियोजनाएं-
- पोंगजल विद्युत परियोजना- 396 मेगावाट- व्यास नदी पर।
- गज जल विद्युत परियोजना- शाहपुर-10 मेगावाट।
- बनेर जल विद्युत परियोजना- 12 मेगावाट।
कुछ महत्वपूर्ण बातें-
(1) धर्मशाला में केंद्रीय विश्वविद्यालय है। इसका एक डेरा में भी है।
(2) हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड का मुख्यालय धर्मशाला है।
(3) धर्मशाला को छोटा तिब्बत के नाम से भी जाना जाता है।
(4) 1863 ई. में सेंट जॉर्ज चर्च के पास लॉर्ड एलगिन को दफनाया गया था।
(5) वॉर मेमोरियल धर्मशाला में है।
(6) तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय भी धर्मशाला में है।
(7) 1978 ई. में- पालमपुर में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई।
(8) 1978 ई. में- पपरौला में आयुर्वेदिक कॉलेज की स्थापना की गई। पपरौला में नवोदय स्कूल भी है।
(9) 1846 ई. में- धर्मशाला का निर्माण लॉर्ड मैकलोड़ ने किया।
(10) अंद्रेटा में शोभा सिंह आर्ट गैलरी है।
(11) डल झील धर्मशाला में है।
Kangra
(कांगड़ा) के मंदिर
काँगड़ा त्रिगत का इतिहास-
बाणगंगा नदी के किनारे बसे गांव “राहुर” में 52 कुल्हाड़ियाँ पाषाण युगीन पत्थर निर्मित पायी गयी थी।
बाणगंगा तथा पातालगंगा के संगम नंदरुल के समीप बदाम की शक्ल एक कुल्हाड़ी मिली है,जो पूर्व या मध्यकाल की कृति है।
कांगड़ा जिले के त्रिपाल और ज्वालामुखी के समीप औदुंबरो के 360 सिक्कों में से 103 सिक्के मिले हैं।
कनिहारा में “कुषाण शासकों “के चार सिक्के मिले हैं,और ज्वालामुखी में कुनिंदो के तीन सिक्के मिले हैं।
त्रिगत का नाम महाभारत पुराण और राजतरंगिणी में वर्णित है।
त्रिगत रियासत की स्थापना भूमिचंद ने की थी, जिसकी राजधानी मुल्तान (पाकिस्तान) थी।
इस वंश के 234 वें राजा सुशर्मा ने त्रिगत के कांगड़ा में किले की स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाया।
त्रिगत का अर्थ –
तीन नदियों के बीच पहले भू-भाग को कहा जाता है,यह नदियां रावी व्यास और सतलुज हैं।
बाणगंगा,कुराली और न्युगल, के संगम स्थल को भी त्रिगत कहा जाता है।
Kangra (कांगड़ा) का अर्थ- कान का गढ़।
भगवान शिव ने जब जालंधर राक्षस को मारा तो उसके कान जिस स्थान पर गिरे वह स्थान कांगड़ा कहलाया।
अबुल फजल द्वारा लिखित पुस्तक आइन-ए-अकबरी में जालंधर जिला को “बिष्ट जालंधर” कहां गया है।
प्राचीन काल में जालंधर की बाहलिका या वालहिका के रूप में पहचान की गई है।
पाणिनि ने इसे “आयुधजीवी” संघ कह कर पुकारा है।
सर अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार जालंधर राज्य का प्रथम वर्णन ग्रीक “भूगोल शास्त्री” टॉलेमी के वृतांत में पाया गया है,
जहां इसे कलिन्द्रेंन कह कर संबोधित किया गया है।
राज तरंगिणी के अनुसार- 470 ई.में श्रेष्ट सेना ,520 ई में प्रवर सेना ने त्रिगत पर आक्रमण कर उसे जीता।
606ई.-647ई.- इस समय कश्मीर से लेकर नेपाल तक के सभी पहाड़ी राजा राजा हर्ष का प्रभुत्व स्वीकार करते थे
635ई.में- हेनसांग काँगड़ा के राजा उदिमा के मेहमान बन कर काँगड़ा आये थे।
725 ई.में- कन्नौज की गद्दी पर यशोवर्मन राजा आसीन हुआ जिसने राज्य की सीमा पूर्व में बंगाल और पश्चिम में पंजाब तक बड़ा ली।
उसने बुद्धसेन नामक दूत भी चीन के सम्राट के दरबार में भेजा था।
883-903 ई.में – कश्मीर के राजा शंकर बर्मन ने अपने गुर्जर अभियान के समय राजा पृथ्वी चंद्र को अपने अधीन कर लिया।
चंबा में दो ताम्रपत्र मिले हैं-जो राजा सोमबर्मन द्वारा 1066 इसी में लिखे गए हैं थे,
इन ताम्रपत्रों में राजा साहिल बर्मन का वर्णन है।
10 वीं सदी के अंत में उत्तर पश्चिम की और मुसलमानों के भयंकर आक्रमण आरंभ हुए और यामी शादी के आरंभ से और भी बढ़ते गए-
1001ई.में- महमूद गजनवी का पंजाब पर आक्रमण और यह प्रतिवर्ष बढ़ते ही गए।
1009ई.में- महमूद गजनवी ने पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया।
इस समय औदुम्बर के राजा आनंदपाल और उसके पुत्र ब्रह्मापाल को हराकर कांगड़ा पर आक्रमण किया,
उस समय कांगड़ा का राजा जगदीश चंद्र था।
उतबी द्वारा लिखित तारीख-ए-यामिनी में इस आक्रमण उल्लेख है।
उतबी का कहना है कि नगरकोट दुर्ग भीम नगर के नाम से प्रसिद्ध था।और फरिस्ता ने भीमकोट कहा है।
1043 ई.तक- कांगड़ा किला तुर्कों के कब्जे में रहा।
1059 ई में- महमूद गजनवी के वंश का इब्राहिम सुल्तान बना।
1070 ई.में- उसने जालंधर पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया।
कटोच राजाओं के हाथ से जालंधर सहित मैदानी भाग निकल गया उस समय त्रिगत का राजा जगदेव चंद्र था।
1170 ई.में- त्रिगत दो भागों में बंट गया, उस समय त्रिगत का राजा पदम् चंद्र था।
उसके छोटे भाई पूर्वचंद्रा ने होशियारपुर के नजदीक जसवां राज्य की स्थापना की।
1171 ई.में- पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली के तोमर राज्य पर अधिकार कर लिया।
1143 ई.में- मोहम्मद गौरी ने गजनबी के राज्य पर अधिकार कर लिया।
1175 ई.में- उसने भारत पर आक्रमण आरंभ किए।
1191 से 1192- उसके युद्ध पृथ्वीराज चौहान के साथ हुए ,1191 में पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई
लेकिन 1192 तराइन की दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज को हार का सामना करना पड़ा।
12 वीं शताब्दी और 13वीं शताब्दी के कुछ इतिहास का पता कांगड़ा के बैजनाथ में स्थित शिव मंदिर के दो शिलालेखों से लगता है।
यह शिलालेख “शारदा” लिपि में है। शिलालेखों पर 1126 शक संवत अंकित है, जो ईशा का वर्ष 1204 है, इस समय बैजनाथ को “कीर ग्राम” कहते थे।
लेख के अनुसार उस समय वहां का स्थानीय राजा राणा लक्ष्मण चंद्रा था।