Language and And Tribes
भाषा और जनजातियां
भाषा
पहाड़ी भाषा का स्रोत(SOURCE)- शौरसेनी अपभ्रंश
पहाड़ी भाषा की लिपि- टांकरी
डॉ जी ए गियर्सन ने हिमाचली भाषाओं का पश्चिमी पहाड़ी भाषाओं के रूप में सर्वेक्षण किया
हिमाचल के जिलों में बोली जाने वाली विभिन्न बोलियां
चंबा जिले में बोली जाने वाली बोलियां
चम्बयाली, भटयाती, चुराही, पंगवाली, भरमौरी
भटयाती- पांगी मैं बोली जाती है
चुराह- भरमौर में बोली जाती है
मंडी जिले में बोली जाने वाली बोलियां
सुकेती मंडयाली, बालड़ी, सरघाटी
कुल्लू जिले में बोली जाने वाली बोलियां
कुल्लवी भाषा बोली जाती है
स्थानीय बोलियां- सिराजी तथा सैजी
बिलासपुर जिले में बोली जाने वाली बोलियां
कहलूरी भाषा बोली जाती है
कांगड़ा जिले में बोली जाने वाली बोलियां
कांगड़ी बोली, बोली जाती है
स्थानीय बोलियां- पालमपुरी, शिवालिक
सिरमौर जिले में बोली जाने वाली बोलियां
स्थानीय बोलियां- धारटी, बिशवाई
सोलन
महासुवी भाषा बोली जाती है
स्थानीय बोलियां- हांडूंरी, भगाटी, क्योंथली
किन्नौर
किन्नौरी बोली जाती है
स्थानीय बोलियां- छितकुली, सुनामी, होमस्कंद, संगनूर, शुम्को
लाहौल-स्पीति
लाहौल में लाहौली, स्पीति में तिब्बती बोली जाती है
उपबोलियाँ- गेहरी, चागसा, गारा, रंगलोई, मनचाटी,
हिमाचल में 88.77% लोग हिंदी, 5.83% लोग पंजाबी बोलते हैं
जनजातियां
हिमाचल प्रदेश के पांच प्रमुख जनजातियां है
किन्नर, लाहौली, गद्दी, गुज्जर, और पंगवाल,
गद्दी जनजाति
निवास स्थान- भरमौर
मुख्य व्यवसाय- भेड़ बकरी पालन
डोरा-
गद्दी स्री, पुरुष, बालक, सभी कमर पर काले रंग का रस्सा बांधे रखते हैं, इसे डोरा कहते हैं। यह लगभग एक सौ हाथ लंबा होता है, इसे गद्दी “गात्री” कहते हैं
चंबा जिले के भरमौर में गद्दी को “गदियार” भी कहते हैं
प्रसिद्ध गीत- राजा-गद्दण
देवता
शिव (मुख्य देवता), केलांग (दराती देवता ), गुग्गा (पशु रक्षक देवता)
पाणिनि अष्टाध्याई में “गद्दी और गब्दिका” प्रदेश का वर्णन है, जिसका अपभ्रंस रूप गद्दी है।
बच्चों के मुंडन को जट्टू कहा जाता है
विवाह
(1) झीण्ड फुक या बरार फुक
लड़की द्वारा भागकर शादी करना करना, झाड़ी लकड़ी को जलाकर उसके चारों और 8 चक्कर लगाना
(2) झांझरारा
आपसी समझौते या भागकर विवाह करना
(3) घर जवान्तरि
घरजँवाई
(4) बट्टा-सट्टा
अपनी बहन देकर लड़की से विवाह करना
देसी शराब- झोल
भोजन
नूहारी या डूटेलू (नाश्ता), कलार (दोपहर का भोजन), बैली(रात का भोजन)
किन्नर जनजाति
किन्नर या किन्नौरा वर्तमान किन्नौर निवासियों को कहते हैं
किन्नर प्रदेश के लोगो को तिब्बती खुनु और लदाख में माओं कहा जाता है
किन्नर हिंदू और बौद्ध दोनों धर्मों के अनुयायी हैं
कालिदास ने किन्नरों को अशव मुख कहा है, वैसे ही किन्नर का शब्दार्थ है- आधा देव
यहां पर साड़ी को दोडु, टोपी को टेपा कहते हैं
अचकन (हुवा)यहाँ की प्राचीन भूषा है
मुख्य व्यवसाय- कृषि और बागवानी
इनमें बहुपति प्रथा विद्यमान है
भाषा-
किन्नर की भाषा स्वतंत्र है, जिसका नाम “हमस्क्त” है
किन्नर भाषा में पानी को “ती”, मकान को “किम”, पेड़ को “बोलेंग”, लोटा को “लठरी”, थाली को “नंग”, बहन को “दाउच”, दादा को “तेते”, माता को “आमा ओऊ” कहता है
विवाह-
प्रेम विवाह- दमचालसिस, डमाटनंग
जबरन विवाह- दरोश, न्यामशा, दपांग, आशिश
अरेंज मैरिज- जनेटांग
तलाक- थागचोचा
मृत्यु रिवाज- डुबंत, फुकंत, भकंत
गुज्जर जनजाति
हिन्दू गुज्जर स्थायी तौर पर गांव में रहकर कृषि या अन्य व्यवसाय करते है
मुस्लिम गुज्जर घुमक्ड़ स्वभाव के होते है, यह लोग मुख्यतः कश्मीरी वेशभूषा पहनते हैं
हिमाचल में गुज्जरों की संख्या 30000 है
मुख्य सम्पति- दूध, घी
जाड़ जनजाति
तिब्बत के हुर्कू और जोंग अथवा तहसीलदारों की मनमानी तथा अत्याचार से तंग आकर जो तिब्बती भारतीय सीमा में आकर रहने लगे, उन्हें भारतीय जाड कहते हैं
जाड शब्द का तात्पर्य- वर्ण व्यवस्था न मानने वाले लोगे से है
हिमाचल में ज्यादातर जाड हाँगरंग में रहते है , इनकी भाषा तिब्बती है
तिब्बत से आकर भारतीय प्रदेश में रहने वाले जाडो को तीन श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं
(1) जाड (2) खम्पा अथवा खाम्पा जाड (3) भैसों जाड
क्रमश: तीन श्रेणियों में रखे गए लोग हिमाचल के हांगरंग, स्पीति, और टिहरी गढ़वाल के नेलंग क्षेत्रों में रहते है
मुख्य व्यवसाय – कृषि, पशुपालन
अविवाहित स्त्रियों को तीन श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं उनमें से एक है-
जोमो-
जो स्त्रियाँ शादी नहीं करती है और आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करती है, वे बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर लामा जी के उपदेश से सिर मुड़ा लेती है, इनको जोमो कहा जाता है
भोट अथवा बोध जनजाति
हांगरंग में जिन्हे जाड कहते है, उन्ही लोगो को पांगी, लाहुल में “भोट या बोध” कहा जाता है
यह बोध धर्म को मानते है
पांगी के हुनान, सुराल और परमार ग्रामों में केवल भोट ही रहते हैं
खम्पा अथवा खाम्पा जनजाति
जो तिब्बती भारतीय सीमा में आने के बाद अभी तक घुमंतू जीवन बिता रहे हैं उन्हें खम्पा अथवा खाम्पा कहा जाता है,
यह लोग तंबू में रखते हैं, और घोड़ों पर सामान लादकर भारत और तिब्बत में व्यापार करते हैं
कुछ खम्पा तंबू में नहीं रहते वे प्राकृतिक गुफाओं में रहते हैं, तथा भीख मांग कर जीवन यापन करते हैं, ऐसे खम्पा टिहरी गढ़वाल में अधिक मिलते हैं, उन्हें ही “भैरों जाड” कहा जाता है
खंगपा का शब्दार्थ है- अपने घर अपने साथ लेकर चलने वाले खानाबदोश
खम्पा का शब्दार्थ- पूर्वी तिब्बत के निवासी
जो पूर्वी तिब्बत के लोग भारत आए थे उनको चार भागों में विभक्त कर सकते हैं
(1) पिति खम्पा- जो स्पीति के रहने वाले है परन्तु खानाबदोश है
(2) गर्जा खम्पा- जो लाहौल के मूल निवासी है, परन्तु खानाबदोश है
(3) नेखोर खम्पा- नेखोर का शब्दार्थ है तीर्थ यात्रा
जो तिब्बती खम्पा तीर्थ यात्रा के लिए भारत आए हैं और जगह-जगह खानाबदोशों के समान घूमते हैं, उन्हें नेखोर खम्पा कहा जाता है
(4) खुनु खम्पा- रामपुर बुशहर में रहने वाले खम्पा, खुनु खम्पा कहलाते है
पंगवाल जनजाति
चम्बा के पांगी क्षेत्र के लोगों को पंगवाल कहते है
मुख्य व्यवसाय- कृषि और भेड़ बकरी पालन
विवाह
जंगीशादी, टोपी लानी शादी (विधवा पुनर्विवाह),
ये लोग हिन्दू धर्म को मानते है
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