Revolts before 1857

1857 से पूर्व के कुछ महत्वपूर्ण विद्रोह-

Revolts before 1857

(1) चेरो विद्रोह-

यह विद्रोह 1800 में शुरू हुआ और 1802 तक चला इसका नेतृत्व भूषण सिंह ने किया,विद्रोह बिहार के पलामू जिले में हुआ

विद्रोह का कारण- स्थानीय राजा तथा कंपनी के द्वारा जागीरदारों की जमीने छीनना

(2) फकीर विद्रोह-

यह आंदोलन 18 वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ और 19वीं शताब्दी तक बंगाल में चला

आंदोलन का नेतृत्व मजनूम शाह ने किया मजनूम शाह की मृत्यु के बाद नेतृत्व चिराग अली शाह ने किया

भवानी पाठक और देवी चौधरानी इस आंदोलन के दो प्रमुख हिंदू नेता थे

Revolts before 1857

नागरिक विद्रोह-

(3)सन्यासी विद्रोह-

यह आंदोलन 1763 में प्रारंभ हुआ और 1800 तक चलता रहा

विद्रोह का नेतृत्व धार्मिक मठवासियों और बेदखल जमीदारों ने किया

विद्रोह की खासियत हिंदू मुसलमान एकता थी

प्रमुख नेता- मंजर शाह, मूसा शाह, भवानी पाठक, आदि के नाम उल्लेखनीय हैं

सन्यासी कौन थे?

हिंदू नागा और गिरी के सशस्त्र सन्यासी थे, जो मराठों राजपूतों तथा बंगाल और अवध के नवाबों की सेनाओं में सैनिक थे

वकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने अपने उपन्यास “आनंदमठ” मैं सन्यासी विद्रोह का उल्लेख किया है

विद्रोह का कारण- तीर्थ यात्रियों द्वारा तीर्थ स्थानों पर यात्रा करने पर प्रतिबंध लगाना

Revolts before 1857

कच्छ का विद्रोह (1816 -32 )-

“कठियावाड़” में राजा भारमल व झरेझा के समर्थक सरदारों में रोष व्याप्त था

1819 में – भारमल को हटाकर उसके अल्पव्यस्क पुत्र को गद्दी पर बैठाया गया

विद्रोहियों ने भारमल को फिर से राजा बनाने की मांग की

1831 में विद्रोह भड़का और अंत में कंपनी को विद्रोह को दबाने के लिए अनुरंजन की नीति अपनानी पड़ी

सूरत का नमक आंदोलन-

1844 में नमक कर 1 /2 रुपया प्रति मन से बढ़ाकर ₹1 प्रतिमाह कर दिया गया

विद्रोह को देखकर सरकार ने अतिरिक्त कर हटा दिया

1848 में सरकार ने एक मानक नाप-तोल लागू करने का पर्यतन किया तो लोगों ने दृढ़ता के साथ इसका बहिष्कार कर सत्याग्रह किया अंत में सरकार ने इसे वापस ले लिया

कोल्हापुर व सावंतवाड़ी विद्रोह- 

1844 के पश्चात कोल्हापुर राज्य के प्रशासनिक पुनर्गठन से लोगों में असंतोष फैल गया

गडकारी जो वंशानुगत सैनिक जाति थी उसकी छंटनी कर दी गई जिससे उन्होंने विद्रोह कर दिया

संभलगढ़ और भदरगढ़ के दुर्ग जीत लिए गए, इसी प्रकार सावंतवाडी में भी विद्रोह हुआ सेना की मदद से दोनों विद्रोह को कुचल दिया गया

 

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