Main Source Of Energy- The Sun
सूर्य के तथ्य-
(1). व्यास- 864,337 मील (13,92,000 k.m)
(2). पृथ्वी से औसत दूरी-
- 93,000,000 मील (147.71 Million k.m)
(3). औसत सतह का तापमान- 99320F
(6). सतह का गुरुत्वाकर्षण- 28 (पृथ्वी की सतह का गुरुत्वाकर्षण=1)
(7). उम्र – 4.6 बिलियन साल
(8). सूर्य की घूर्णन गति- 25 दिन 9 घंटे
(9). सूर्य के बाद पृथ्वी का सबसे निकटतम तारा प्रॉक्सिमा सैंटौरी है, जो पृथ्वी से 4.33 प्रकाश वर्ष दूर है
(10). सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुंचने में 8 मिनट 16.6 सेकंड लगते हैं
The Sun-
- इसकी उत्पत्ति 46,000 मिलियन वर्ष पूर्व सूर्य नेबुला (नेबुला जो एक धूल तथा गैस का विशाल बादल था) से हुई थी।
सूर्य में मुख्यतः
(1). सूर्य की ऊर्जा का स्त्रोत वहां पर होने वाला नाभिकीय संलयन(NUCLEAR FUSION) है, जिसमें हाइड्रोजन का हिलियम में रूपांतरण होता है।
(2). हाइड्रोजन गैस होती है, जो निरंतर कोर में आकर हिलियम में परिवर्तित होती रहती है, इस प्रक्रिया में मुक्त ऊर्जा के कारण सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री हो जाता है।
(3). इनमें से कुछ गैसों की सतह से विस्फोट के कारण तापक्रम 50000 डिग्री या इससे अधिक तक चला जाता है, इससे सनस्पॉट, कूलर, पैच,आदि का जन्म होता है।
सौर गतिविधि-(Solar Activity):
यह सूर्य की बाहरी परत में होती है-
जब मजबूत चुंबकीय क्षेत्र फोटोस्फेयर के माध्यम से निकलता है, और तीव्र विकिरणशील का उत्सर्जन करता है।
(Solar activity- occurs in the outer layer when strong magnetic fields breakthrough the Photosphere and EMIT intense radiation)
The Sun-
सूर्य के चारों ओर एक पतला वातावरण है, जिसे कोरोना कहते हैं
- सूर्य की ऊर्जा इसके अंदर हाइड्रोजन के हिलियम में संलयन(फ्यूज़न) के कारण उत्पन्न होती है।
- फ्यूज़न प्रक्रिया में इसका तापक्रम 1.4 करोड़ डिग्री सेंटीग्रेड हो जाता है।
- सूर्य का चमकने वाला सतर दीप्तिमान सतर(Radient) कहलाता आता है,
- दीप्तिमान सतर से ऊपर वर्णमंडल (Chromosphere) होता है।
इस वर्णमंडल के पीछे प्रभावमंडल युक्त किरीट (Corona Veneris) होता है, इस वर्णमिति में सूर्य के सात रंग शामिल है।
इसके ऊपर सैकड़ों फ्राउनहोफर लाइन खींची हुई है जो किसी न किसी तत्व को इंगित करती हैं।
(Hundreds of Fraunhofer lines are drawn over it which indicate some element.)
इन तत्वों का घनत्व इन रेखाओं की तीव्रता तथा चौड़ाई से जाना जाता है।
(The density of these elements is known by the intensity and width of these lines.)
सूर्य के धब्बे- (सनस्पॉट)
- सूर्य की सतह पर देखे गए काले निशान है।
- वे काले इसलिए दिखाई देते हैं क्योंकि वह सूर्य की तापमान से लगभग 1500 डिग्री सेंटीग्रेड कम तापक्रम वाले होते हैं।
- सनस्पॉट का औसत चक्कर 11 वर्ष का होता है सनस्पॉट की यह प्रक्रिया पृथ्वी पर जल वायु की स्थिति को बहुत हद तक प्रभावित करती है।
- यह उतरी अमेरिका ‘जेट स्ट्रीम’ को प्रभावित करती है विषुवत रेखा के साथ ‘अल नीनो’ की प्रक्रिया का भी इस सनस्पॉट से संबंध है।
- सनस्पॉट में चुंबकीय क्षेत्र अधिक मजबूत होता है और यह प्रत्येक 11 साल में अधिकतम सीमा तक पहुंचते हैं।
- इनसे पृथ्वी पर आइनोस्फीयर में उथल-पुथल, चुंबकीय तूफान, रेडियो संचार में बाधाएं, जैसी कई अन्य बाधाएं उत्पन्न होती हैं।
ध्रुवीय ज्योतियाँ-
यह दो प्रकार की होती है-
(1). उत्तर ध्रुवीय ज्योति (2). दक्षिण ध्रुवीय ज्योति
- यह प्रायः बहुरेखीय होती है, यह आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्रों में क्रमशः दिखाई पड़ते हैं।
- सूर्य से निकले विद्युतीय कण ऊपरी वायुमंडल में गैसों को संपादित करते हैं,और अपने ही विभिन्न रंगों में चमकते हैं।
सौर प्रज्वाल-
- आमतौर पर सनस्पॉट चक्र के चरम के दौरान होता है।
- ऊर्जा का ये घातक विमोचन 600 टन से अधिक प्रति सेकंड में अरबों टन आवेशित कण को, और साथ ही रेडियो तरंगों से लेकर एक्स-रे तक विकिरण को अंतरिक्ष की तरफ छोड़ देता है।
- सौर प्रज्वाल आमतौर पर केवल कुछ मिनट तक रहता है।
- उस समय में, इसका तापमान कई मिलियन केल्विन तक पहुंच सकता है।
- सोलर फ्लेयर का आवेशित कण कभी-कभी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र तक सीमित हो जाता है, जो अंतरिक्ष में अरोरा और भू-चुंबकीय, तूफान, बाधित उपग्रह, संचार और लुप्तप्राय अंतरिक्ष यात्रियों का कारण बन सकता है।
सौर पवन-(Solar Wind)
- सौर वायु सूर्य से बाहर, वेग से आने वाले आवेशित कणों या प्लाज़्मा की बौछार को नाम दिया गया है।
- सौर पवन तब होती है, जब परमाणु कण सूर्य के कोरोना से बाहर निकलते हैं।
- एक गस्ट प्रति सेकंड 1 मिलियन टन पदार्थ की मात्रा ले सकता है।
- सौर हवा में ज्यादातर प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन होते हैं, जिनमें थोड़ी मात्रा में सिलिकॉन, सल्फर, कैल्शियम, क्रोमियम, निकेल और आर्गन आयन होते हैं।
- सौर वायु कण कभी-कभी पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं और ध्रुवीय ज्योति की छटा के रूप में दिखाई देते हैं।